आपके लिए पेश है अकाल की समस्या पर निबंध हिंदी में इस निबंध में अकाल की समस्या के बारे में काफी सारी बाते लिखी गई है।

akal ki samasya nibandh hindi

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अकाल एक भीषण समस्या निबंध हिंदी

प्रस्तावना : किसी भी वस्तु का अभाव "अकाल" या "दुर्भिक्ष" कहलाता है। सामान्यतया खाने-पीने की वस्तुओं का अभाव तथा पशुओं के लिए चारे-पानी के अभाव को ही "अकाल" का नाम दिया जाता है। हमारा देश ऐसे अकाल का शिकार सदियों से होता आया है और आज भी इतने विकास के बावजूद अनेक प्रान्तों जैसे बिहार, बंगाल आदि में स्थिति बहुत भयावह है। आज भी लोग भूखे-नंगे हैं तथा सड़कों पर सोते हैं।

अकाल के मुख्य कारण : अकाल मूल रूप से दो कारणों से उत्पन्न होता है- 1. कृत्रिम, 2. प्राकृतिक। कृत्रिम अकाल पैदा करने के लिए मुख्य रूप से बड़े-बड़े उद्योगपति, उत्पादक तथा सरकार उत्तरदायी होती है। इस अकाल को पैदा करने के लिए स्वार्थी तथा मुनाफ़ाखोर व्यापारी अपने माल को गोदाम में छिपाकर रखते हैं। उनका उद्देश्य यह होता है कि देश में किसी भी वस्तु की कमी को दर्शा दिया जाए. और फिर कीमतों को बढ़ाकर कालाबाजारी के आधार पर अधिक मुनाफे पर बेचा जाए। इस अकाल के समय हर इंसान को अनाज तथा खाने-पीने का वस्तुओं की तंगी का सामना करना पड़ता है। इस प्रकार के अकाल को अपनी मर्जी से बड़े-बड़े उत्पादक समाप्त भी कर सकते हैं।

प्राकृतिक अकाल का मूल कारण वर्षा का कम होना या आवश्यकता से अधिक होने से बोया हुआ बीज अधिक पानी के कारण सड़-गल जाना है या खाने योग्य नहीं रह जाना है। इसी प्रकार सूखा पड़ने पर या वर्षा बहुत कम होने पर या बेमौसम बरसात होने पर भी फसल खराब हो जाती है। कम वर्षा में कुएँ, तालाब इत्यादि का पानी भी सूख जाता है तथा बाढ़ आने पर अनेक बीमारियाँ फैल जाती हैं जिसके कारण हर तरफ हाहाकार मच जाती है ऐसा अकाल प्राकृतिक प्रकोप होता है और ईश्वर की दया होने पर ही समाप्त हो पाता है। 

ब्रिटिश काल का अकाल : एक बार ब्रिटिशसरकार ने भी अपने शासनकाल में बंगाल में कृत्रिम अकाल पैदा कर दिया था जिसके कारण सब तरफ हाहाकार मच गया था। अनगिनत लोग भूखे-प्यासे तड़प-तड़पकर मर गए थे। ऐसे समय औरतों ने अपना शरीर बेचकर भूख मिटाई थी। ऐसे समय में चारे-पानी के अभाव में पशु भी बेमौत मारे गए थे। अंग्रेजों के इस कार्य से सारा देश उनके खिलाफ खड़ा हो गया था।

अकाल के बुरे परिणाम : अकाल के केवल दुष्परिणाम ही होते हैं। इससे फायदा तो केवल पूंजीपतियों का ही होता है। इधर-उधर पड़ी लाशों को मांसाहारी पशु नोच-नोचकर खा जाते हैं। कुछ लोग भूखमरी से मर जाते हैं तो कुछ बिमारियों से, जबकि कुछ लोग तो अपनों की हत्याएँ करके स्वयं भी आत्महत्या कर लेते हैं। परिणामस्वरूप जगह-जगह लाशें सड़ने लगती हैं जिससे पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है और चारो ओर बीमारियाँ फैल जाती हैं।


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