आपके लिए पेश है झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध हिंदी में (jhansi ki rani lakshmi bai essay in hindi)  इस निबंध में झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई की काफी सारी जानकारी दी गयी है।

jhansi ki rani lakshmi bai essay in hindi

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झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई निबंध

प्रस्तावना : अनेक पुरुषों के साथ-साथ अनेकों महिलाओं ने भी देश की स्वतन्त्रता के लिए अपने प्राणों की हँसते-हँसते आहति दे दी, उन्हीं में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम भी सर्वोपरि और अमर है। सन्‌ 1857 में लड़े गए प्रथम स्वतन्त्रता-संग्राम का इतिहास लक्ष्मीबाई ने अपने खून से लिखा था। 

जन्म तथा बचपन : रानी लक्ष्मीबाई का जन्म सन्‌ 1835 ई. में सितारा के समीप “बाई” नामक गाँव में हुआ था। उनका वास्तविक नाम 'मनु' था। जब मनु केवल चार वर्ष की थी, तो उनकी माँ भागीरथी चल बसी थीं। मनु के पिता मोरोपन्त ठिठूर के पेशावा बाजीराव के विश्वासपात्र कर्मचारी थे। मनु काफी चंचल स्वभाव की थीं, इसलिए सब उन्हें "छबीली" कहकर पुकारते थे। कुश्ती, मल्लयुद्ध, घुड़सवारी, तीर व तलवार चलाने व नकली किले की व्यूह-रचना आदि उनके बचपन के खेल थे। उनके हृदय में बचपन से ही स्वदेश-प्रेम की भावना के अंकुर फूट चुके थे। 

वैवाहिक जीवन : सन्‌ 1842 ई. में इनका विवाह झाँसी के अन्तिम पेशावा राजा गंगाधर राव के साथ हुआ था। विवाह के बाद से ही "मनु" का नाम "झाँसी की रानी" पड़ गया। लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई। उनके पति भी पुत्र वियोग में चल बसे । महारानी ने अंग्रेजी सरकार से दामोदर राव को दत्तक पुत्र बनाने की अनुमति माँगी, जिसे अंग्रेजों ने ठुकरा दिया। ब्रिटिश शासकों ने झाँसी को अंग्रेजी राज्य में मिलाने की घोषणा की, तो लक्ष्मीबाई शेरनी की भाँति दहाड़ उठी और बोली, "मैं अपनी झाँसी किसी कीमत पर भी नहीं दूँगी।" तभी से लक्ष्मीबाई ने झाँसी को बचाने के लिए अपना जीवन संघर्षमय बना दिया। 

1857 का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम : इस संग्राम का शंखनाद लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में ही हुआ। पूरे भारत में विद्रोह की लहर दौड़ गई। भारत माता के सच्चे बेटों ने देश को स्वतन्त्र कराने की ठान ली। बगावत की इसी आग ने लखनऊ, कानपुर, मेरठ तथा भोपाल आदि को अपनी चपेट में ले लिया। 

अंग्रेजों से टक्कर : रानी के सैनिक अवसर पाते ही अंग्रेजी सेना के सेनापति जनरल ह्यूरोज पर टूट पड़े। दूसरी ओर कालपी से तांत्या टोपे बीस हजार सैनिक साथ लेकर रानी की सहायता के लिए आए, भाग्य ने रानी का साथ दिया और अंग्रेजों को उनकी नानी याद दिला दी। लेकिन अंग्रेजों की विशाल सेना के समक्ष वे टिक न पाई। अन्त में विवश होकर उन्हें झाँसी छोड़कर कालपी जाना पड़ा। ग्वालियर में रानी ने दोबारा अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया लेकिन वह अपने प्राण गवाँ बैठीं।

रानी लक्ष्मीबाई ने देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। वह देश के लिए शहीद होकर अमर हो गईं। उनका सम्पूर्ण जीवन हर भारतीय के लिए एक आदर्श स्रोत है।


झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई निबंध PDF

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