आपके लिए पेश है मेरा प्रिय कवि तुलसीदास पर निबंध हिंदी में (mere priya kavi tulsidas nibandh) इस निबंध में तुलसीदास जी की काफी सारी जानकारी दी गयी है।

mere priya kavi tulsidas hindi nibandh

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मेरा प्रिय कवि तुलसीदास हिंदी निबंध

प्रस्तावना : मुझे पढ़ने का बेहद शौक है तभी तो मैं पाठ्य पुस्तकों के साथ-साथ पुस्तकालय में बैठकर कवियों, लेखकों की रचनाएँ पढ़ता रहता हूं। मैंने हिन्दी तथा अंग्रेजी के अनेक कवियों जैसे सूरदास, तुलसीदास, जयशंकर प्रसाद, शेक्सपीयर की रचनाओं को ध्यान से पढ़ा है। निःसन्देह सभी को अपनी-अपनी विशेषताएँ होती हैं। कोई प्रकृति प्रेम का दीवाना है, तो कोई स्त्री प्रेम का। कोई वीरता की गाथा गाता है, तो कोई देश प्रेम की। लेकिन मेरे प्रिय कवि कवि शिरोमणि तुलसी दास जी हैं।

जन्म परिचय तथा शिक्षा दीक्षा : कवि शिरोमणि तुलसीदास जी के जन्म स्थान के विषय में अनेक मतभेद हैं। अभी तक यह निश्चित नहीं हो पाया है कि उनका जन्म-स्थान कौन सा है। इसी प्रकार उनकी जन्म तिथि भी एक रहस्य ही है। सच्चाई यह है कि उन्होंने अपने विषय में अधिक कुछ नहीं लिखा है। लेकिन कुछ विद्वानों का अनुमान है कि उनका जन्म अशुभ नक्षत्र में सम्वत्‌ 1554 की श्रावण शुक्ला सप्तमी को हुआ था।

तुलसीदास के पिताजी का नाम आत्माराम दूबे एवं माता का नाम हुलसी था। अशुभ नक्षत्र में जन्म लेने के कारण उनके माता-पिता नें उन्हें त्याग दिया था और उनका लालन-पालन एक दासी ने किया था। दुर्भाग्य से उस दासी का भी देहान्त हो गया था और तुलसीदास अनाथ हो गए थे।

कुछ समय पश्चात्‌ तुलसीदास की भेंट स्वामी नरसिंह दास से हुई। नरसिंह दास उन्हें अपने साथ अयोध्या ले गए तथा उनको राम नाम की दीक्षा देकर विद्याध्ययन शुरू कर दिया। उसके बाद 25-30 वर्ष की आयु तक वे विद्याध्ययन में लगे रहे।

तुलसी जी का विवाह रत्नावली नामक एक सुन्दर तथा सुशील कन्या से हो गया। वे अपनी पत्नी से बेहद प्यार करते थे। एक बार रत्नावली मायके चली गई तो वे नदी पार करके ससुराल जा पहुंचें। लेकिन उनकी पत्नी को यह सब पसन्द नहीं आया और उसने तुलसीदास से कहा, "कि जितना प्यार तुम मुझसे करते हो, उतना प्यार यदि ईश्वर से करोगे, तो तुम्हारा उद्धार हो जाएगा ।"

वैराग्य एवं साहित्य रचना : अपनी पत्नी की बातों से तुलसीदास जी के जीवन में एक परिवर्तन आ गया तथा सांसारिक जीवन को छोड़ वे भगवान की भक्ति में लीन हो गए। उन्होंने अपने जीवन काल में 20 से भी अधिक रचनाएँ लिखी हैं लेकिन रामचंद्र जी के जीवन पर आधारित "रामचरितमानस" उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है। उनका स्वर्गवास 125 वर्ष की आयु में सम्बत्‌ 1631 में हुआ था।

निष्कर्ष : ऐसे कवि शिरोमणि विरले ही इस दुनिया में जन्म लेते हैं। इस महान विभूति ने समाज तथा साहित्य की जो सेवा की है, वह अवर्णनीय है। उनके समान उदार तथा समन्वयवादी एकाध ही होता है।


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