आपके लिए पेश है मदर टेरेसा पर निबंध हिंदी में (mother teresa essay in hindi) इस निबंध में मदर टेरेसा की काफी सारी जानकारी दी गयी है।

mother teresa essay in hindi

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मदर टेरेसा निबंध हिंदी 

प्रस्तावना : संसार का सबसे बड़ा धर्म दूसरों की सेवा और परोपकार करना है। इसमें लगन, उत्साह तथा दृढ़ इच्छा शक्ति की आवश्यकता होती है। बाल्यकाल से ही मदर टेरेसा का ध्यान चकाचौंध से दूर ईश्वर भक्ति में लगता था। वह मानव सेवा के माध्यम से ही ईश्वर की भक्ति करना चाहती थीं।

जन्म परिचय व शिक्षा : महान मदर टेरेसा का जन्म 27 अगस्त, सन्‌ 1910 को यूगोस्लाविया में हुआ था। उनके पिता एक साधारण से स्टोरकीपर थे। मदर टेरेसा बचपन से ही ईसाई धर्म तथा प्रचारकों द्वारा किए जा रहे सेवा कार्यों में रुचि लेती थी। मात्र 18 वर्ष की आयु में ही वे भिक्षुणी बन गई थी तथा भारत आकर ईसाई मिशनरियों द्वारा चलाए जा रहे सेवा कार्यों से जुड़ गई थीं। उन्होंने अध्यापिका के रूप में अपना जीवन आरम्भ करके समाज सेवा का श्रीगणेश किया । कलकत्ता में सेंट मैरी हाई स्कूल में अध्यापिका के रूप में कार्य किया।

परोपकारी कार्य : 10 सितम्बर, सन्‌ 1946 की शाम को वे आत्म-प्रेरणा से कलकत्ता की झुग्गी-झोपड़ियों में सेवा-कार्य के लिए चल पड़ी। उन्हें जो भी धन प्राप्त होता था, वह उसे दीन-दुखियों की सेवा में खर्च कर देती थीं। सन्‌ 1964 ई. में एक बार 'पोप” भारत आए थे, तो उन्होंने मदर टेरेसा को अपनी कार भेंट स्वरूप दी थी। उन्होंने उस कार की नीलामी 59930 डॉलर में करके कुष्ठ रोगियों की एक बस्ती बसाई। एक दिन उन्होंने कलकत्ता के एक अस्पताल के बाहर एक महिला को लावारिस हालत में पड़े देखा, जिसे कीड़ों तथा चूहों ने जगह-जगह से कुतर डाला था। टेरेसा ने उस स्त्री की मृत्यु तक देखभाल की। उसी दिन से मदर टेरेसा ने सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार किया कि वह उन लोगों को प्यार करती हैं, जिन्हें कोई भी प्यार नहीं करता, जो अपाहिज हैं, लाचार हैं, दीन-हीन हैं और मरणासन्नत हैं।

पुरस्कारों से सम्मानित : अप्रैल, 1962 में तत्कालीन राष्ट्रपति जी ने उन्हें 'पदमश्री” से विभूषित किया। इसके बाद फिलीपीन्स सरकार की ओर से उन्हें 10,000 डॉलर पुरस्कार स्वरूप दिए गए। यह सारी राशि उन्होंने आगरा में एक कुष्ठाश्रम बनवाने में खर्च कर दी। कलकत्ता समाज ने अन्ततः मदर टेरेसा के सेवा भाव को स्वीकार कर इस कार्य के लिए सर्वाधिक व्यस्त “जगदीशचन्द्र वसु रोड” पर स्थान दिया। यहाँ पर उन्होंने 1950 में 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी” की स्थापना की। इसी सेवा भाव के लिए सन्‌ 1979 में उन्हें विश्व का सर्वश्रेष्ठ "नोबेल पुरस्कार” दिया गया। सनू 1980 में भारत सरकार की ओर से उन्हें 'भारत रत्न” से अलंकृत किया गया। मदर टेरेसा ने जिस कार्य की नींव डाली, उसने उन्हें विश्व प्रसिद्ध बना दिया। उनका यह सेवा कार्य दुनिया के 63 देशों में 244 केन्द्रों में चल रहा है। इस कार्य में लगभग 3,000 सेवक-सेविकाएँ काम करती हैं। नीली किनारी की मोटी सूती साड़ी पहनने वाली इस दुबली-पतली स्त्री ने दुनिया में जहाँ भी दीन-दुखी देखें, उनको अपनाकर स्नेह रूपी छाया प्रदान की। 15 सितम्बर, 1997 ई. को जब मदर टेरेसा ने अन्तिम साँस ली, तो सारा विश्व अपनी मदर (माँ) को ख़ोकर अनाथ सा महसूस करने लगा।


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